पल भर जीवन
अर्पित तन मन
स्वप्निल बादल
निराश दल दल //
अब वही फिर वही पल
पी चुका फिर हला हल
रूह क्या ,तेरी या मेरी
ज़ुदा नहीं ,नहीं विचलित//
हो चुके जो अब व्यतीत
वही वह बनाते अतीत
याद जैसे हो झरोंखे
द्रश्य फ़िर वह नए अनोखे //
नये भाव स्मृति पटल पर
नए गीत नयी कलम पर
रात्रि सर्प कहीँ अद्रश्य
तू ही तू तेरे ही द्रश्य //
चाँद रात झूमते पलाश
मै औ तू निरभ्र आकाश
ध्यान किसका कौन लीन
मेँ औ तू बस अब विलीन //
अर्पित तन मन
स्वप्निल बादल
निराश दल दल //
अब वही फिर वही पल
पी चुका फिर हला हल
रूह क्या ,तेरी या मेरी
ज़ुदा नहीं ,नहीं विचलित//
हो चुके जो अब व्यतीत
वही वह बनाते अतीत
याद जैसे हो झरोंखे
द्रश्य फ़िर वह नए अनोखे //
नये भाव स्मृति पटल पर
नए गीत नयी कलम पर
रात्रि सर्प कहीँ अद्रश्य
तू ही तू तेरे ही द्रश्य //
चाँद रात झूमते पलाश
मै औ तू निरभ्र आकाश
ध्यान किसका कौन लीन
मेँ औ तू बस अब विलीन //
2 टिप्पणियां:
बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार
बढ़िया रचना !
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