30 सित॰ 2013

नया दृश्य

मैने ज्यों उछाला राष्ट्र  शब्द

छा गया सन्नाटा ,सब निशब्द

फिर बात की राष्ट्र प्रेम की

वहां बात हुई रास प्रेम की /

शब्द ईमान औ ईमानदारी भी उछाले

उन्हें लगी मूर्खता औ मुंह पे लगे ताले /

अरे वो श्रवण कुमार अब तो बस कांवरिया

डिस्को में नाचता , अब रात भर सांवरिया /

रिश्ते नातेदार निरे समय गंवाते ,

चचा ताऊ बक बक ,बहुत सर खाते /

कविता औ छंद अब लगें चप्पो लल्लो

सुनने दो शीला या बस छम्मक छल्लो /

अब जेब कतरों से पट गयी दिल्ली

देवी के जागरणों में भक्त पड़े टल्ली//

मदरसों आश्रमों में बढ़ता अनाचार 

धर्म धर्म नहीं ,धर्म अब व्यापार /

इन  सभी दृश्यों का ना अब कोई अंत 

सत्य जहाँ दिखता ऐसा न कोई पंथ /

भ्रष्ट हुए तंत्र अब भ्रष्ट सारे मंत्र //

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