3 फ़र॰ 2013

गिरने की यातना

दरख़्त पे चिड़िया 
फुदकती घोसले में बया 
अहसास क्यूँ न हुआ /
पत्ते बंधे शाखों से 
कैदी बने झुरमुट से 
वो चिड़िया मुक्त पक्षी 
पत्ते मुक्त भी हुए 
तो भी गिरेंगे 
कुचले जायेंगे 
सोंधी  ज़मीनों पे 
काश वो भी चिड़िया होते 
उनके भी पंख होते 
न गिरते न कैदी होते 
गाते से उड़ते से 
ऊंचे और ऊंचे उन्मुक्त 
दूर उसी बंदीगृह से 
और उस गिरने की यातना से //

भ्रम दूर

यूं अतल गह्वर में खो गया सतहों से दूर भ्रमों ने खूब नाच नचाये मधुर भयावह स्वप्न लहराए डूबता गया ,किनारों से दूर मूँगों के झुरमुट ,मोतियों की सीपियाँ ध्वनि विहीन अनगिनत दृश्यावलियाँ हो चूका बस अब ,हुआ मैं चूर हुए स्वप्न बहुत ,हुए भ्रम दूर //

नहीं हूँ आभास

मुठ्ठी में लिए शब्द 
बिखरा दिए आस्मा मे 
छितराए से ,इतराए से 
जा मिले सितारों से 
 सितारों की उदासी दूर 
मैं  फिर अकेला ,
नशे में चूर /
  क्या है सबब  ,
क्यूँ  ये उदासी
ये चाहत है किसी की 
या चाहत है ओढी सी  ?
 खेलूँगा फिर शब्दों से 
दिखाऊंगा फिर छन्दो से 
ओ दूर वालों ! देखो !
क्या क्या बुनने की नियत ,
रूमी की रूमानियत ,
ये ओढ़े हुए लिबास ,
नहीं यूँ शक  न करो 
में सच हूँ ,
नहीं हूँ आभास //

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