3 फ़र॰ 2013

भ्रम दूर

यूं अतल गह्वर में खो गया सतहों से दूर भ्रमों ने खूब नाच नचाये मधुर भयावह स्वप्न लहराए डूबता गया ,किनारों से दूर मूँगों के झुरमुट ,मोतियों की सीपियाँ ध्वनि विहीन अनगिनत दृश्यावलियाँ हो चूका बस अब ,हुआ मैं चूर हुए स्वप्न बहुत ,हुए भ्रम दूर //

1 टिप्पणी:

Isha ने कहा…

भ्रम ही सही पर कुछ पता तो चला .जैसे मूँगों के झुरमुट ,
मोतियों की सीपियाँ ......

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