23 फ़र॰ 2012

दहलीजों के पार बुला ले

चुपके चुपके झाँका करता
चेहरा चाँद नज़र आ जाता
दरवाजे की ओट खड़ा सा
फिर पीछे मैं हट सा जाता /
नयन सजीले नयन झुकाती
मंद मंद वो क्यूँ मुस्काती /तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से
कोमल स्वप्न सलोने लाती /
फूलों पर फिर उड़ें तितलियाँ
बदली गरजे ,गिरे बिजलियाँ
मौन होंठ भी कह ना पाते
कम्पन सा अन्दर भर जाते /
लुका छिपी ये आखिर कब तक
रहूँ खड़ा मैं आखिर कब तक
दूर दूर अब पास बुला ले
दहलीजों के पार बुला ले //


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