13 जन॰ 2012

बेताज बादशाही

हर व्यक्ति पूर्ण है / किन्तु हमारी भेद बुध्धि अनवरत क्रिया शील है ,अतः यह पूर्णता भी अधूरी लगती है /
कहीं कुछ रह गया है ,हम विश्राम हीन से अनवरत कुछ खोजते ही रहते हैं / हा हा ! आखिर यह खोज क्यों ? सब कुछ यहीं तो है आस पास !
किन्तु नहीं !यही खोज तो एक माध्यम है / एक मार्ग प्रशस्त करती है /जीवन को जीने का अर्थ देती है /
वो जो सामने अनखोजा है ,वही तो उत्प्रेरक है आगे बढ़ने का !

यदि हम रुक गए और विश्राम को गंतव्य मान लिया तो फिर प्रगति कहाँ ? क्रियाशीलता कहाँ ? फिर तो सिर्फ ब्लैक होल ही है "बिग बेंग " हो ही न पायेगा /
नुसरत फ़तेह अली खान का "तू एक गोरख धंधा है " हमारी इसी सूफी तड़प का एक भाग है !
अनेको तो इस तड़प में ही सूफी हो गए / पूजे गए ,प्रिय बने /
हज़रत निजामुद्दीन औलिया की मस्ती का यही राज था /
उनकी बेताज बादशाही उस समय के बादशाह को भी अखरी थी /

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