18 फ़र॰ 2012

स्वीकार कर ले

ओ पथिक तू सोच खोया
मौन है क्या जाग रोया ?
पीर है ये तीर सी है
आँख गीली नीर सी है /
देख वो भी कहाँ सोती !
रख संजो ले नयन मोती /
जा कहीं मनुहार कर ले
ओ पथिक स्वीकार कर ले
तू अकेला न था सृष्टि का
बूँद भर था उसी वृष्टि का
जा कहीं सत्कार कर ले
प्रेम को स्वीकार कर ले /
ओ विरागी धूमकेतु !
गतिमान तीव्र कहाँ किस हेतु ?
आ यहाँ विश्राम कर ले .
प्रेम को स्वीकार कर ले ,
नृत्य कर ले ,गीत गा ले
छोड़ गति तू धुरी पा ले /
ओ पथिक स्वीकार कर ले ,
जा कहीं मनुहार कर ले /

3 टिप्‍पणियां:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

खूबसूरत लिखा है.....!!

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

thnx

Mithilesh ने कहा…

भाव, मर्म, दर्द, लफ्ज, तड़प, अभिव्यक्ति, कामना, मंशा, गुहार, अपनत्व, स्नेह, सोच और हर मासूम ख्वाब में लिपटी इस मर्मस्पर्शी अभियक्ति के लिए साधुवाद..

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